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WWW डाक्यूमेंट्स का समूह होता है जो आपस में एक दूसरे से hypertext से जुड़े हुए होते है | hypertext document में टेक्स्ट, इमेज, ध्वनि आदि का समावेश होता है WWW internet की एक सेवा है| WWW का प्रयोग सबसे पहले TIM BERNERS LEE ने 1989 में CERN प्रयोगशाला में किया | वर्ल्ड वाईड वेब मे सूचनाओ को वेबसाईट के रूप मे रखा जाता है। ये वेबसाइटे वेब सर्वर पर हाईपरटैक्स्ट फाइलो के रूप संग्रहित होती है। वर्ल्ड वाईड वेब एक प्रणाली हैै, जिसके द्वारा प्रत्येक वेबसाइट को एक विशेष नाम दिया जाता है। उसी नाम से उसे वेब पर पहचाना जाता है।
WWW का पूरा नाम वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web) है। इन्टरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब का आपस में गहरा सबंध है जो दोनों एक दुसरे पर निर्भर हैं। वर्ल्ड वाइड वेब जानकारियों का भण्डार होता है जो लिंक्स के रूप में होता है दरअसल यह एक ऐसी तकनीक है जिसके कारण संसारभर के कंप्यूटर एक दुसरे से जुड़े हुए हैं। वर्ल्ड वाइड वेब HTML , HTTP , वेब सर्वर और वेब ब्राउज़र पर काम करता है।
किसी वेबसाइट के नाम को उसका URL (Uniform Resource Locator) भी कहा जाता है। जब हम किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है, ब्राउजर प्रोग्राम के पते वाले बाॅक्स या एड्रेस बार मे उसका नाम या URL भर देता है। इस नाम की सहायता से ब्राउजर प्रोग्राम उस सर्वर तक पहुचता है जहाॅ वह फाइल या वेबसाइट स्टोर की गयी है और उससे एक वेबपेज प्राप्त करने के बाद हमारे कम्प्यूटर पर ला देता है। उस सूचना को व्राउजर प्रोग्राम माॅनीटर की स्क्रीन पर प्रदर्शित कर देता है। उस वेबसाइट पर कई हाइपरलिंक भी हो सकते है। प्रत्येक हाइपरलिंक किसी अन्य वेबपेज या वेबसाइट का URL बताता है। उस लिंक को क्लिक करने पर ब्राउजर उसी वेबपेज या वेबसाइट तक पहुचकर उसे उपयोगकर्ता को उपलब्ध करा देता है। इस प्रकार उपयोगकर्ता किसी वेबसाइट को देख सकता है, जिसका URL या Name उसे पता हो।
Hypertext Information System:- वेब पेज के document में विभिन्न घटक होते है जैसे टेक्स्ट, graphics, object, sound यह सभी घटक आपस में एक दूसरे से जुड़े होते है | इन घटकों को आपस में जोड़ने के लिए hypertext का उपयोग किया जाता है |
Distributed:- www में वेबसाइट एक दूसरे से जुड़े होते है |सभी वेबसाइट में अलग अलग इन्फोर्मेशन होती है बहुत सी वेबसाइट ऐसी होती है जो दूसरे वेबसाइट से जुडी होती है| यूजर एक वेबसाइट खोलकर उससे दूसरे वेबसाइट से जुड सकता है इस कार्यप्रणाली को Distributed System कहा जाता है |
cross platform :– cross platform का अर्थ होता है की वेब पेज या वेब साईट किसी भी कंप्यूटर hardware या operating System पर कार्य कर सकता है|
Graphical Interface:- वर्तमान में सभी वेबसाइट में टेक्स्ट के अलावा विडियो, ध्वनि आदि का समावेश रहता है | Hyperlink सुविधा से इन्फोर्मेशन को आसानी से देख सकते है या वेब पेज से जोड़ सकते है | dynamic website में मेनू, कमांड, बटन आदि का यूज किया जाता है, इससे कार्य करने में आसानी जाती है |
URL किसी भी फाइल का एड्रेस होता है, जिसके तीन भाग होते है :-
हम में से अधिकांश लोग इंटरनेट और इंट्रानेट की शर्तों के बीच भ्रमित हो जाते हैं। यद्यपि उनके बीच बहुत अधिक असमानता मौजूद है, इनमें से एक अंतर यह है कि इंटरनेट सभी के लिए खुला है और सभी के द्वारा एक्सेस किया जा सकता है, जबकि, इंट्रानेट को निजी तौर पर ही प्रयोग किया जा सकता हैं|
तुलना का आधार | इन्टरनेट | इंट्रानेट |
आशय | कंप्यूटर के विभिन्न नेटवर्क को एक साथ जोड़ता है | यह इंटरनेट का एक हिस्सा है जो किसी विशेष फर्म के निजी स्वामित्व में है |
सरल उपयोग | कोई भी इंटरनेट का उपयोग कर सकता है | केवल संगठन के सदस्यों द्वारा ही इसका प्रयोग किया जा सकता हैं| |
सुरक्षा | इंट्रानेट की तुलना में उतना सुरक्षित नहीं है | यह अधिक सुरक्षित हैं| |
उपयोगकर्ता की संख्या | असीमित | सीमित |
ट्राफिक | अधिक | कम |
नेटवर्क का प्रकार | इन्टरनेट एक सार्वजनिक नेटवर्क हैं| | इंट्रानेट एक प्राइवेट नेटवर्क हैं| |
दी हुई जानकारी | असीमित, और सभी द्वारा देखा जा सकता है| | सीमित, और एक संगठन के सदस्यों के बीच प्रसारित करता है| |
सर्वर की संख्या | इंटरनेट पर हजारों सर्वर कार्य कर रहे होते हैं। | इंट्रानेट में सर्वर की संख्या सीमित होती हैं। |
नेटवर्क | इंटरनेट नेटवर्को का नेटवर्क हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के नेटवर्को (LAN, MAN, WAN) को मिलाकर एक नेटवर्क तैयार किया जाता हैं। | इंट्रानेट मुख्य रूप से लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) से मिलकर बना होता हैं। |
मालिक | इन्टरनेट का कोई भी मालिक नहीं होता हैं| | इंट्रानेट का कोई न कोई मालिक अवश्य होता हैं| |
वेब स्पेस | इंटरनेट पर किसी साइट को चलाने के लिये पहले इस साइट को वेब सर्वर पर अपलोड करने के लिये Web Space की आवश्यकता होती हैं। इसके लिए अलग अलग सर्वर की सेवाऍ ली जाती हैं। | इंट्रानेट पर किसी साइट को अपलोड करने के लिए Web Space की आवश्यकता नहीं होती हैं। अपितु उसमें प्रयोग होने वाले सर्वर से ही काम किया जाता हैं। |
प्रयोग | इसका प्रयोग बडे पैमाने पर किया जाता है। | इसका प्रयोग छोटे पैमाने पर किया जाता है। |
इंटरनेट एक ग्लोबल नेटवर्क है इंटरनेट विभिन्न LAN, MAN और WAN का संग्रह है जो एक कनेक्शन स्थापित करता है और विभिन्न कंप्यूटरों के बीच सूचनाओ का आदान प्रदान करता है। यह किसी भी जानकारी जैसे डेटा, ऑडियो, वीडियो आदि को भेजने और प्राप्त करने के लिए वायर्ड और वायरलेस दोनों प्रकार के संचार का उपयोग करता है। यहाँ, डेटा “फाइबर ऑप्टिक केबल” के माध्यम से ट्रेवल करता है, जो टेलीफोन कंपनियों के स्वामित्व में है।
आजकल हर कोई इंटरनेट का उपयोग सूचना प्राप्त करने, कम्युनिकेशन करने और नेटवर्क पर डेटा स्थानांतरित करने के लिए करता है। यह एक सार्वजनिक नेटवर्क है जिसका उपयोग करके कंप्यूटर एक दूसरे से जुड़ सकते हैं और रिले कर सकते हैं। यह उपयोगकर्ता को सूचना का एक उत्कृष्ट स्रोत प्रदान करता है।
इंट्रानेट इंटरनेट का एक हिस्सा है जो निजी तौर पर प्रयोग किया जाता है। इंट्रानेट ज्यादातर LAN, MAN या WAN है यह सभी कंप्यूटरों को एक साथ जोड़ता है और नेटवर्क के भीतर फाइलों और फ़ोल्डरों तक पहुंच प्रदान करता है। इसमें अनजान उपयोगकर्ता को नेटवर्क तक पहुंचने से बचने के लिए सिस्टम के आसपास एक फ़ायरवॉल होता है। इसमें केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं को नेटवर्क तक पहुंचने की अनुमति है।
इसके अलावा, इंट्रानेट का उपयोग कंप्यूटर को जोड़ने और फर्म के भीतर डेटा, फ़ाइलों या दस्तावेजों को प्रसारित करने के लिए किया जाता है। यह जानकारी और फ़ोल्डर्स को शेयर करने का एक सुरक्षित तरीका है क्योंकि संगठन के भीतर नेटवर्क अत्यधिक सुरक्षित और प्रतिबंधित होता है। यह विभिन्न सेवाओं जैसे ईमेल, सर्च, डेटा संग्रहण आदि का प्रतिपादन करता है।
इंटरनेट और इंट्रानेट दोनों के समान पहलू और असमानताएं हैं। इंटरनेट विभिन्न LAN, MAN और WAN का संग्रह है, जबकि, इंट्रानेट ज्यादातर LAN, MAN या WAN है। एक इंट्रानेट इंटरनेट की तुलना में सुरक्षित है क्योंकि उपयोगकर्ता लॉगिन नियमित अंतराल पर अद्यतन करता रहता है और यह एक संगठन तक सीमित होता है।
इन्टरनेट का कोई भी मालिक नहीं हैं | इसलिए इन्टरनेट का पूरा खर्च किसी को वहन नही करना पड़ता, बल्कि इन्टरनेट पर किये जाने वाले कार्य के बदले प्रत्येक User को अपने हिस्से का भुगतान करना पड़ता हैं | नेटवर्क से सभी छोटे तथा बड़े नेटवर्क जुड़े होते हैं तथा इनको जोड़ने पर होने वाले खर्च की राशि कहाँ से लाये, यह निर्णय करते है| School, University और Company अपने कनेक्शन का भुगतान क्षेत्रीय नेटवर्क को करती है तथा वह क्षेत्रीय नेटवर्क इस एक्सेस के लिए इन्टरनेट सेवा प्रदाता को भुगतान करता है|
वह कंपनी जो इन्टरनेट एक्सेस प्रदान करती है इन्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) कहलाती है| किसी अन्य कंपनी की तरह ही इन्टरनेट सेवा प्रदाता अपनी सेवाओ के लिए User से पैसा लेती है| internet Service Provider Company दो प्रकार का शुल्क लेती हैं|
Users को इन्टरनेट कनेक्शन लेने तथा इन्टरनेट प्रयोग करने का शुल्क ISP को देना पड़ता है| ISP कंपनी Users से समयावधि, दूरी, गति तथा डाटा डाउनलोड या अपलोड की मात्रा के अनुसार शुल्क लेती है | BSNL, IDEA, Reliance, Sify, Bharti, VSNL, Airtel, Vodafone आदि इन्टरनेट सेवा प्रदाताओ के नाम हैं|
कनेक्टिविटी से आशय इंटरनेट से जुङने के लिए यूज़ होने वाले तरीके से है | इंटरनेट किसी भी प्रकार का कोई बिज़नेस प्रोडक्ट नहीं है बल्कि यह इन्फॉर्मेशन का ग्रुप है, जिसका प्रयोग यूजर अपनी आवश्यकता के अनुसार इन्फॉर्मेशन को कलेक्ट करने के लिए करता है | इंटरनेट एक ऐसी जगह है जहां दुनिया की हर जानकारी सिर्फ एक क्लिक से आपको मिल जाएगी | इन्टरनेट का कोई भी मालिक नहीं होता है इसके कारण इंटरनेट को यूज़ करने के लिए कुछ विशेष नियम व प्रोटोकॉल बनाये गए है , जिसे हर यूजर को मानना पड़ता है और उसे इसी रूल्स के हिसाब से इंटरनेट प्रयोग करना होता है |
इंटरनेट को यूज़ करने के लिए सबसे पहले आपको किसी सर्वर से जुड़ना होता है, इंटरनेट सर्वर एक ऐसा सिस्टम कहा जा सकता है जो क्लाइंट यानि यूजर के द्वारा आने वाली रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट करके उसके द्वारा मांगी गयी जानकारी उपलब्ध कराता है | इन्टरनेट की सेवाए लेने के लिए पहले आपको इन्टरनेट से कनेक्ट होना पड़ता है और इसके लिए आपको इन्टरनेट कनेक्शन लेना पड़ता है |ऐसी सेवा कई कंपनियां देती है|
ऐसी कंपनियां जो इन्टरनेट की सर्विस प्रोवाइड कराती है ISP (internet service provider) कहलाती है | इन्टरनेट का प्रयोग करने के लिए आपको ISP से कनेक्शन लेना होता है | जब आप इस कंपनी का नेटवर्क यूज़ करते है ,तो आपको इसके लिए आवश्यक फीस जमा करनी होती है ,इसी के साथ आपका सिस्टम उस कंपनी के सर्वर के साथ जुड जाता है | हर नेटवर्क की जिम्मेदारी होती है की जब वह किसी यूजर को सर्विस प्रोवाइड कराता है ,तो नेटवर्क से सम्बंधित कोई भी परेशानी आने पर उसे दूर करे | इंटरनेट से जुड़ने के पहले यह विचार करना पड़ता है की आप किस लेवल पर इंटरनेट यूज़ करना चाहते है, इंटरनेट से जुड़ने के लिये कई प्रकार के कनेक्शन उपलब्ध है जो निम्नलिखित है –
इंटरनेट से जुडने के लिये कई तरीके है। इसके लिये आपको अपना कम्प्यूटर किसी सर्वर से जोडना होता है। इंटरनेट सर्वर कोई ऐसा कम्प्यूटर है, जो दूसरे कम्प्यूटरो से भेजी गई प्राथनाओ को स्वीकार करता है और उन्हे उनकी जानकारी उपलब्ध कराता है। ये सर्वर कुछ अधिकृत कंपनियो द्वारा स्थापित किये जाते है, जिन्हे इंटरनेट सेवा प्रदाता कहा जाता है। ऐसी सेवा देने वाली अनेक कंपनीयां है, आपके पास किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी का कनेक्शन होना चाहिए। जब आप अपने क्षेत्र मे कार्य करने वाली किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से आवेदन करते है और आवश्यक शुल्क जमा करते है, जिसके द्वारा आप उस कंपनी के सर्वर से अपने कम्प्यूटर को जोड सकते है।
Dial up Connection
ISDN Connection
Leased line connection
VSAT Connection
Broadband Connection
Wireless Connection
USB Modem Connection
सामान्य टैलीफोन लाइन द्वारा, जो आपके कम्प्यूटर को डायल अप कनेक्शन के माध्यम से इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी के सर्वर से जोड देती है। इसलिए इसे Dial up connection भी कहा जाता हैं | कोई डायल अप कनेक्शन एक अस्थायी कनेक्शन होता है, जो आपके कम्प्यूटर और आईएसपी सर्वर के बीच बनाया जाता है। डायल अप कनेक्शन मोडेम का उपयोग करके बनाया जाता है, जो टेलीफोन लाइन का उपयोग आईएसपी सर्वर का नंबर डायल करने मे करता है। ऐसा कनेक्शन सस्ता होता है, और इसकी स्पीड कम होती हैं | इसकी स्पीड kbps (kilo byte per second) तथा mbps (mega byte per second) में मापी जाती हैं |
यह डायल उप कनेक्शन के समान ही होता हैं परन्तु यह महंगा होता हैं और इसकी स्पीड डायल उप से ज्यादा होती हैं |
लीज लाइन ऐसी सीधी टेलीफोन लाइन होती है, जो आपके कम्प्यूटर को आईएसपी के सर्वर से जोडती है। यह इंटरनेट से सीधे कनेक्शन के बराबर है और 24 घंटे उपलब्ध रहती है। यह बहुत तेज लेकिन महॅगी होती है।
V-SAT Very Small Apertune Terminal का संक्षिप्त रूप है। इसे Geo-Synchronous Satellite के रूप मे वर्णन किया जा सकता है जो Geo-Synchronous Satellite से जुडा होता है तथा दूरसंचार एवं सूचना सेवाओ, जैसे.आॅडियो, वीडियो, ध्वनि द्वारा इत्यादि के लिये प्रयोग किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार का Ground Station है जिसमे बहुत बडे एंटीना होते है। जिसके द्वारा V-SAT के मध्य सूचनाओ का आदान प्रदान होता है, Hub कहलाते है। इनके द्वारा इन्हे जोडा जाता है।
यह वह लाइन होती हैं जो ISP द्वारा भेजी जाती हैं इसके बाद उस लाइन को मॉडेम और टेलीफोन लाइन से जोड़ दिया जाता हैं यह एक प्राइवेट नेटवर्क होता हैं जिसका कोई न कोई मालिक अवश्य होता हैं इसलिए इस नेटवर्क का प्रयोग केवल वही व्यक्ति कर सकता हैं जिसने यह कनेक्शन लिया हैं |
जैसे – MTNL, BSNL, sify, idea आदि वह कंपनियां हैं जो ब्रॉडबैंड की सुविधा देती हैं |
Wireless वह कनेक्शन होता हैं जिसमे केबल का प्रयोग नहीं किया जाता हैं जैसे – wifi इसे चलाने के लिए किसी केबल की आवश्यकता नहीं होती हैं wifi कनेक्शन के लिए केवल Router की आवश्यकता होती हैं|
इस कनेक्शन के लिए मॉडेम की आवश्यकता नहीं होती हैं USB device के माध्यम से यह कनेक्शन स्थापित किया जाता हैं इसमें Sim card के द्वारा इन्टरनेट कनेक्शन बनाया जाता हैं USB Modem में sim card लगाने के बाद कंप्यूटर से कनेक्ट करने पर नेट चालू हो जाता हैं |
जैसे – Net Sector एक USB modem हैं इसे कई कंपनी द्वारा बनाया गया हैं idea, reliance, Airtel, Tata docomo, jio आदि |
URL का फुल फॉर्म Uniform Resource Locator होता है जो किसी website या वेबसाइट के पेज को रिप्रेजेंट करता है, या आपको किसी वेब पेज तक ले जाता है। यूआरएल इन्टरनेट में किसी भी फाइल या वेब साईट का एड्रेस होता है | URL की शुरुआत Tim Berners Lee ने 1994 में की थी |
किसी वेबसाइट का अद्वितीय नाम या पता, जिससे उसे इंटरनेट पर जाना, पहचाना और उपयोग किया जाता है, उसका URL कहा जाता है। इसे Uniform Resource Locator भी कहा जाता है। किसी वेब पते का सामान्य रूप निम्न प्रकार होता है।
यहाॅ type उस सर्वर का type बताता है, जिससे वह फाइल उपलब्ध है और Address उस साइट का पता बताता है। उदाहरण के लिये एक वेब पोर्टल के URL http://www.yahoo.com मे http सर्वर का type है और www.yahoo.com उसका पता है। जब हम किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है तो इसका URL पते के बाक्स मे टाइप किया जाता है। यदि कोई सर्वर टाईप नही दिया जाता, तो उसे http मान लिया जाता है। हम किसी वेब पेज का पाथ उसकी वेबसाइट के यूआरएल मे जोडकर उस वेब पेज को सीधे भी खोल सकते है।
किसी वेबसाइट का पूरा URL इन सभी भागो के बीच मे डाॅट (.) लगाकर जोडने से बनता है। केवल प्रोटोकाॅल के नाम के बाद एक कोलन (:) और दो स्लेश (//) लगाये जाते है, जैसे-http://www.yahoo.com।
डोमेन नाम वेबसाइट के उद्येश्य को पहचानता है। उदाहणार्थ, यहाॅ .com डोमेन नाम बताता है कि यह एक व्यापारिक साइट है। इसी प्रकार लाभ न कमाने वाले संगठन .org तथा स्कूल तथा विश्वविद्यालय आदि .edu डोमेन नामो का उपयोग करते है। सामान्यत: निम्न 6 प्रकार के डोमेन यूज किये जाते है |
इन्टरनेट पर हर वेबसाइट का एक IP Address होता है जो numerical होता है जैसे www.google.com का IP एड्रेस 64.233.167.99 हैं तो जैसे ही हम अपने ब्राउज़र में किसी वेबसाइट का URL टाइप करते हैं तब हमारा browser उस url को DNS की मदद से उस डोमेन के IP address में बदल देता है। और उस वेबसाइट तक पहुच जाता है जो हमने सर्च की थी । शुरुवात में direct IP से ही किसी वेबसाइट को एक्सेस किया जाता था लेकिन यह एक बहुत कठिन तरीका था । क्योंकि इतने लम्बे नबर को तो कोई याद रख पाना बहुत मुश्किल था । इसलिये बाद में DNS (domain name system) नाम बनाये गए जिस से हम किसी वेबसाइट का नाम आसानी से याद रखा जा सकता है
वेबसाइट्स के समूह को पोर्टल कहा जाता है। पोर्टल का शाब्दिक अर्थ होता है प्रवेशद्वार। पोर्टल वास्तव में स्वयं भी एक वेबसाइट होती है, जिससे दूसरे कई अन्य संबंधित वेबसाइट पर पहुंचा जा सकता है। इंटरनेट से जुड़ने पर कई प्रकार के पोर्टल मिलते हैं। पोर्टल्स पर विभिन्न स्त्रोतों से जानकारियां जुटाकर व्यवस्थित रूप में उपलब्ध करायी जाती हैं। इसके साथ ही पोर्टल पर कई तरह की सेवाएं भी दी जाती हैं|
जैसे- कई पोर्टल यूजर को सर्च इंजन की सुविधा देते है,इसके अलावा, कम्युनिटी चैट फोरम, होम पेज,और ईमेल की सुविधाएं देते हैं। पोर्टल पर सर्च इंजन ,सब्जेक्ट डायरेक्ट्री, और अन्य सर्विस जैसे- न्यूज़ , इंटरटेनमेंट , स्टॉक , मार्केट ,शॉपिंग आदि की लिंक होती है। इन लिंक के द्वारा आप उस वेबसाइट तक पहुच सकते हो | पोर्टल पर समाचार, स्टॉक मूल्य और फिल्म आदि की गपशप भी देख सकते हैं। बहुत से पोर्टल्स को यूजर अपनी आवश्यकता के अनुसार कस्टमाइज भी कर सकता है |
पोर्टल बड़े सर्च इंजन और ब्राउज़र प्रोवाइडर द्वारा प्रायोजित (Sponsored) होते है। पोर्टल साइट पर सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर अपना ध्यान दो सर्विस पर अधिक लगाते है- मनोरंजन और इनफार्मेशन। वेब साइट के पहले पेज पर यूजर के लिए ये दोनों सर्विस उपलब्ध होती है । साधारण अर्थो में कह सकते है की पोर्टल वो वेब साइट होती है जो यूजर को मनोरंजन और इनफार्मेशन की सर्विस प्रोवाइड कराती है और जहाँ यूजर इंटरनेट पर अधिक अनुभव प्राप्त करता है |
कुछ प्रचलित पोर्टल्स के नाम निम्नलिखित है-
पोर्टल की विशेषताये निम्नलिखित है –
Applications of Internet
इलैक्ट्रानिक मेल या संक्षेप मे ई-मेल इंटरनेट की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली सेवा है। इलैक्ट्रानिक मेल एक ऐसा इलैक्ट्रानिक संदेश होता है, जो किसी नेटर्वक से जुडे विभिन्न कम्प्यूटरो के बीच भेजा व प्राप्त किया जाता है। ई-मेल का उपयोग व्यक्तियो या व्यक्तियो के समूहो के बीच जो भौगोलिक रूप से हजारो मील दूर भी हो सकता है। लिखित संदेश भेजने मे किया जाता है। ई-मेल को मेल सर्वर के माध्यम से भेजा जाता और प्राप्त किया जाता है। कोई मेल सर्वर ऐसा कम्प्यूटर होता है। जिसका कार्य ई-मेलो को प्रोसेस करना और उचित क्लाइंट कम्प्यूटरो को भेजना होता है।
वेब पते की तरह हमारे ई-मेल पते भी होते है, जिस पर ई-मेल भेजी जाती है। ब्राउजर प्रोग्राम की तरह ई-मेल भेजने और प्राप्त करने के लिये विशेष ई-मेल प्रोग्राम या साॅफ्टवेयर होते है जैसे माइक्रोसाॅफ्ट आउटलुक तथा आउटलुक एक्सप्रेस आदि। और हम कुछ वेबसाइट की सहायता से भी अपना ई-मेल भेज तथा प्राप्त कर सकते है।
यदि आप किसी को ई-मेल संदेश भेजना चाहते है, तो आप उसे आॅफलाइन तैयार कर सकते है। संदेश बनाने के लिये, Messages मेन्यु मे New Message आदेश अथवा स्टैण्डर्ड टूलबार मे New Mail बटन को क्लिक कीजिए। इससे नये संदेश की विंडो आपके सामने प्रदर्शित हो जाएगी।इस विंडो मे To: बाक्स मे प्राप्तकर्ता का ई-मेल पता टाईप कीजिए और संदेश का विषय Subject: बाक्स मे टाईप कीजिए। CC: बाक्स मे उनका ई-मेल पता टाईप करके आप इस संदेश की प्रतिलिपि अन्य लोगो को भी भेज सकते है।
किसी E-Mail को भेजने के लिये निम्नलिखित Steps का अनुसरण करते है|
Step 1:अपने सिस्टम को इंटरनेट से कनेक्ट करने के पश्चात् इंटरनेट एक्सप्लोलर को खोलते है। इसमे एड्रेस बार मे उस वेब साइट को type करते है जिसमे हमारी E-Mail Id है, जैसे यहाॅ पर हम www.akhilesh@cyberdairy.com को type करके Enter key press करते है।
Step 2:इसके पश्चात् हम User Name Box मे अपनी Email Id तथा Password Box मे Password लिखते है तथा Enter key Press करते है। इसके पश्चात् स्क्रीन पर हमारा Home Page खुलता है।
Step 3: इसमे हम Write Mail/Compose Mail आॅप्शन पर क्लिक करते है तो स्क्रीन पर एक नयी Window खुलती है, इसमे प्रथम Box मे वह Mail Id लिखते है जिसके पास Attachment को संलग्न करना है। इसके पश्चात् ।Attachment बटन पर क्लिक करते है तो स्क्रीन पर Attachment Box खुलता है।
Step 4: इस बाॅक्स मे Browse Button के माध्यम से उस फाइल को Browse करके Attach हो जाती है।
Step 5: इसके पश्चात् Send Button पर क्लिक करते है। इस तरह संलग्न की गयी फाइल उस ID पर पहुुच जाती है जो हमने Mention की है।
E-Mail को प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित Steps का अनुसरण करते है-
Step 1:अपने सिस्टम को इंटरनेट से कनेक्ट करने के पश्चात् इंटरनेट एक्सप्लोलर को खोलते है। इसमे एड्रेस बार मे उस वेब साइट को type करते है जिसमे हमारी E-Mail Id है, जैसे यहाॅ पर हम www.akhilesh@cyberdairy.com को type करके Enter key pres करते है।
Step 2: इसके पश्चात् हम User Name Box मे अपनी Email Id तथा Password Box मे Password लिखते है तथा Enter key Press करते है। इसके पश्चात् स्क्रीन पर हमारा Home Page खुलता है।
Step 3: इसके पश्चात् हमे जो भी Mail किसी के द्वारा भेजे गये है उसे हम अपने Inbox मे जाकर प्राप्त कर सकते है।
इलैक्ट्रानिक मेल या संक्षेप मे ई-मेल इंटरनेट की सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली सेवा है। इलैक्ट्रानिक मेल एक ऐसा इलैक्ट्रानिक संदेश होता है, जो किसी नेटर्वक से जुडे विभिन्न कम्प्यूटरो के बीच भेजा व प्राप्त किया जाता है। ई-मेल का उपयोग व्यक्तियो या व्यक्तियो के समूहो के बीच जो भौगोलिक रूप से हजारो मील दूर भी हो सकता है। लिखित संदेश भेजने मे किया जाता है। ई-मेल को मेल सर्वर के माध्यम से भेजा जाता और प्राप्त किया जाता है। कोई मेल सर्वर ऐसा कम्प्यूटर होता है। जिसका कार्य ई-मेलो को प्रोसेस करना और उचित क्लाइंट कम्प्यूटरो को भेजना होता है।
वेब पते की तरह हमारे ई-मेल पते भी होते है, जिस पर ई-मेल भेजी जाती है। ब्राउजर प्रोग्राम की तरह ई-मेल भेजने और प्राप्त करने के लिये विशेष ई-मेल प्रोग्राम या साॅफ्टवेयर होते है जैसे माइक्रोसाॅफ्ट आउटलुक तथा आउटलुक एक्सप्रेस आदि। और हम कुछ वेबसाइट की सहायता से भी अपना ई-मेल भेज तथा प्राप्त कर सकते है।
नि:शुल्क ई-मेल सेवायें वह सेवायें होती हैं जो कि हमें इंटरनेट पर बिना किसी कीमत के प्राप्त होती हैं, अर्थात् इन सेवाओं के लिये हमें कोई शुल्क प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती हैं। आजकल इंटरनेट पर काफी संख्या में ऐसी वेबसाइटें उपलब्ध हैं जो इंटरनेट यूजर को नि:शुल्क E-Mail सेवायें उपलब्ध कराती हैं।
यद्यपी इंटरनेट पर ऐसी वेबसाइटें भी उपलब्ध हैं जो E-Mail सेवायें प्रदान करने के लिये शुल्क भी लेती हैं। Free ई-मेल सेवायें प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य इंटरनेट को लोकप्रिय बनाना हैं तथा इंटरनेट यूजर को अधिक से अधिक सेवायें तथा जानकारी प्रदान करना हैं। प्रमुख रूप से निम्नलिखित वेबसाइटें हैं जो Free ई-मेल सुविधायें उपलब्ध कराती हैं-
1. TCP – Transmission Control Protocol
2. IP – Internet Protocol
3. SMTP – Simple Mail Transfer Protocol
4. POP – Post Office Protocol
5. SLIP – Serial Linr Internet Protocol
6. PPP – Point To Point Protocol
7. SNMP – Simple Network Management Protocol
8. UDP – User Datagram Protocol
9. HTTP – Hypertext Transfer Protocol
10. FTP – File Transfer Protocol
11. MIME – Multipurpose Internet Mail Extension
12. UUCP – Unix To Unix Copy Protocol
13. X400
14. telnet
इंटरनेट द्वारा प्रयोग किया जाने वाला कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल TCP/IP है यह प्रोटोकॉल दो भागों में विभाजित है पहला भाग TCP- Transmission Control Protocol (ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल) है जो इंटरनेट पर डाटा ट्रांसफर करने में प्रयोग किया जाता है यह किसी फाइल या संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में सहायक होता है|
दूसरा भाग IP – Internet Protocol (इंटरनेट प्रोटोकॉल) है यह प्रोटोकॉल प्राप्तकर्ता के कंप्यूटर के address को संभालने के लिए उत्तरदाई होता है ताकि प्रत्येक पैकेट सही रास्ते से भेजा जा सके| यह प्रोटोकॉल इंटरनेट से जुड़े हुए प्रत्येक कंप्यूटर में प्रयोग किया जाता है चाहे वह लेपटॉप हो, पर्सनल कंप्यूटर हो या सुपर कंप्यूटर | यह सभी में समान रुप से लागू होता है और इंटरनेट से जुड़े हुए प्रत्येक नेटवर्क में प्रयोग किया जाता है यहां तक कि यह दो स्वतंत्र कंप्यूटरों को नेटवर्क से जोड़ने में भी प्रयोग में लाया जाता है|
SLIP का पूरा नाम Serial Line Internet Protocol हैं | यह इंटरनेट प्रोटोकॉल का पुराना रूप है इसे सीरियल पोर्ट और मॉडेम कनेक्शनों के कार्य के लिए विकसित किया गया है इसे संक्षेप में स्लिप कहा जाता है यह वास्तव में पॉइंट टू पॉइंट प्रोटोकॉल का ही दूसरा रूप है परंतु इसका प्रयोग अब बहुत कम किया जाता है क्योंकि यह डेटा ट्रांसमिशन में होने वाली गलतियों का पता नहीं लगा पाता है|
इसका पूरा नाम File Transfer Protocol है यह प्रोटोकॉल Files को एक system से दूसरे System पर copy करने के लिये प्रयोग किया जाता हैं यह प्रोटोकाल data रूपांतरण directory की सूची तथा अन्य विकल्प प्रदान करता हैं।
FTP दो Connection स्थापित करता हैं ये Connection TCP Protocol की मदद से स्थापित किये जाते है पहला Connection क्लाइंट तथा सर्वर के बीच में Command तथा उसका Response देने के लिये किया जाता हैं और दूसरा Connection data को transfer करने के लिये किया जाता हैं FTP Protocol binary तथा Text files का आदान-प्रदान करता हैं।
यह इन्टरनेट में प्रयोग होने वाला सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल हैं यह एक एप्लीकेशन प्रोटोकॉल हैं जिसका प्रयोग Web Browser की एड्रेस बार में WWW के पहले किया जाता हैं यह प्रोटोकॉल यूज़र द्वारा Address bar में डाले जाने वाले वेबसाइट के एड्रेस तक पहुचाने का कार्य करता हैं |
यह एक ऐसा प्रोटोकॉल हैं जो Internet पर कार्य कर रहें user को दूर स्थित Computer सें जोड़ता हैं। इसके द्वारा हम दूर स्थित कंप्यूटर में login कर सकते हैं और उस कंप्यूटर पार आसानी से कार्य कर सकते हैं |
यह FTP की तुलना में एक साधारण प्राटोकॉल है जो एक System से दूसरे System में file को transfer करता हैं। इसकी एक मात्र विशेषता यह है कि इसके अंदर किसी Client Process व Server Process के बीच files को प्राप्त करने व भेजने की योग्यता हैं।
U.U.C.P. का पूर्ण रूप यूनिक्स टू यूनिक्स कॉपी (Unix-to-Unix Copy) हैं। यह एक यूनिक्स प्रोग्राम (Utility) है जो यूनिक्स के सिस्टम के मध्य संचार को व्यवस्थित करता हैं। दो यूनिक्स कंप्यूटर के मध्य डाटा Transfer करने के लिए UUCP प्रोटोकॉल का प्रयोग किया जाता हैं UUCP अपने संस्करण Honey Bar UUCP तथा Taylor UUCP के नाम से जाना जाता हैं। यह-
ईमेल प्रोटोकॉल का प्रयोग मेल करते समय किया जाता हैं मेल करते समय कई प्रोटोकॉल प्रयोग किये जाते हैं अर्थात User ई-मेल भेजने के लिए अलग-अलग प्रकार के संदेश प्रणाली (Messaging System) का प्रयोग करता हैं, जो दो अलग-अलग पद्धति का प्रयोग करने के फलस्वरूप संदेश का संचार करने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार की समस्याओं के कारण उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों का निदान करने के लिए अलग अलग नियमों को बनाया गया इस समान पद्धति वाले निर्देशों के समूह को प्रोटोकॉल (Protocols) कहते हैं। प्राटोकॉल्स जो इलेक्ट्रॉनिक मेल (email) में प्रयोग होते हैं, निम्न हैं-
इसका पूरा नाम Simple Mail Transfer Protocol हैं। यह प्रोटोकॉल दो Systems के बीच में Mails आदान-प्रदान के लिये Use में लाया जाता हैं। वास्तव में यह Protocol TCP Connection का use करते हुये दो System के बीच में mail का आदान-प्रदान करता हैं।
सिस्टम में ईमेल सुविधा को क्रियांवित करने के लिए यह प्रोटोकॉल प्रयोग किया जाता है इस प्रोटोकॉल की सहायता से ही मेल एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक पहुंचते हैं इस प्रोटोकॉल का प्रयोग एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को मेल ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है|
यह प्रोटोकॉल Client Server मॉडल पर आधारित होता हैं वास्तव में इस प्रोटोकॉल का प्रयोग E-Mail को Download तथा Update करने में किया जाता हैं। इस प्रोटोकॉल के द्वारा Client, Server से E-Mail प्राप्त करता हैं।
इस प्रोटोकॉल का प्रयोग ईमेल कनेक्टिविटी के लिए किया जाता है इसका प्रयोग मुख्य रूप से वाइनरी फाइल ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है|
इस प्रोटोकॉल का प्रयोग मल्टीमीडिया फाइल ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है ईमेल के माध्यम से जो भी मल्टीमीडिया डाटा भेजा जाता है वह MIME के द्वारा भेजा जाता हैं |
MIME का पूर्ण रूप बहुउद्देशीय इन्टरनेट मेल विस्तारक (Multipurpose Internet Mail Extensions) हैं माइम (MIME) ऐसा प्रोटोकॉल है जो असमान अक्षर समूहों (character sets) वाले भाषाओं में टैक्स्ट का विनिमय (interchange) करता हैं साथ ही कई भिन्न कम्प्यूटर प्रणालियों के मध्य मल्टीमीडिया ई-मेल को भी स्थानांतरित (Interchange) करता हैं। माइम प्रयोक्ता को निम्नलिखित सुविधाओं के साथ ई-मेल संदेशों को बनाये तथा पढ़ने की सुविधा प्रदान करता हैं-
Binary files, compressed files जैसे rar तथा zip माइम नॉन-टैक्स्चुअल संदेश विषयवस्तुओं के कई पूर्व-परिभाषित रूपों जैसे GIF फाइलों को सपोर्ट (Support) करने के अतिरिक्त user को उन्हें अपने द्वारा संदेश को परिभाषित करने की अनुमति देता हैं।
वह Login जिससे एक User किसी Host Computer से एक नेटवर्क की सहायता से इस तरह Connect होता है जैसे User Terminal और Host Computer दोनो Directly जुडे हो और User Host Computer User को Keybord और Mouse का प्रयोग करने की Facility भी उपलब्ध कराता है। Remote Login Desktop Sharing की तरह ही कार्य करता है। Remote Login की सहायता से हम Office या घर के Computer को (जो Host कहलाएगे) कही से भी Remote User बनकर Access कर सकते है।
Remote Login के लिये निम्न 3 Components की आवश्यकता होती है-
1. Remote Login को कार्य करने के लिये दोनो होस्ट और रिमोट यूजर को एक ही डेस्कटाॅप शेयरिंग साॅफ्टवेयर Install किया हो।
2. Remote Login तभी कार्य करेगा जब Host Computer की Power On हो, Host Internet से जुडा हो तथा Host Computer पर Desktop शेयरिंग साॅफ्टवेयर Run हो रहा हो। Host Computer से जुडने के लिये User को Desktop शेयरिंग साॅफ्टवेयर का वो ही Version प्रयोग करना होगा जो Host Computer पर Run हो रहा है। इसके पश्चात् सही Session ID और Password डालकर User Host Computer मे Remotely Login कर सकता है।
Login करने के पश्चात् User Host Computer के Keybord Control, Mouse Control सभी साॅफ्टवेयर और फाईलो को Access कर सकता है।
टेलनेट एक पुरानी इंटरनेट सुविधा है, जिसमे आप किसी दूर स्थित कम्प्यूटर मे लाॅग आॅन कर सकते है। दूसरे शब्दो मे यह आपको अपने कम्प्यूटर पर बैठे किसी दूर के कम्प्यूटर का उपयोग करने की सुविधा देता है। इसको रिमोट लाॅगिंग भी कहा जाता है। सामान्यतः कोई टेलनेट प्रोग्राम आपको दूसरे कम्प्यूटर के लिये एक पाठ्य आधारित विडों देता है। आपको उस सिस्टम के लिये एक लाॅगइन प्राॅम्ट दिया जाता है। यदि आपके सिस्टम पर पहुचंने की अनुमति है, तो आप उस पर ठीक उसी प्रकार कार्य कर सकते है, जैसे अपने कम्प्यूटर पर करते है। यह सुविधा उन लोगो के लिये बहुत उपयोगी है जो दूसरे कम्प्यूटरो पर ऐसा कार्य करना चाहते है, जो FTP आदि अन्य सुविधाओ के माध्यम से नही किया जा सकता है।
स्पष्ट है कि यह सुविधा सबके लिये खुली नही है। यह केवल अधिकृत लोगो को ही दी जाती है और प्रत्येक टेलनेट कम्प्यूटर के बाहरी उपयोगकर्ताओ को ऐसी अनुमति देने के अपने नियम होते है।
चैटिंग इंटरनेट पर की जाने वाली एक रोचक क्रिया है। यह टेलीफोन पर बात करने के समान है। अंतर केवल यह है कि बोलने की जगह हम अपनी बात या संदेश की बोर्ड पर टाईप करते है, जो तत्काल ही प्राप्तकर्ता के माॅनीटर की स्क्रीन पर तुरंत ही दिया जाता है। तब प्राप्तकर्ता अपने की बोर्ड पर उसका उत्तर टाईप करता है, जो हमारे माॅनीटर की स्क्रीन पर तुरंत ही दिखा दिया जाता है। इस प्रकार बातचीत तब तक चलती रहती है। जब तक आप चाहते है। इस तरह की चैटिंग को टेक्स्ट चैट कहा जाता है
चैटिंग चैट समूहो मे की जाती है। किसी चैट समूह को चैनल भी कहा जाता है। चैनल समान्यतः विशेष विषयो पर केन्द्रित होते है जैसे-राजनीती, खेल, संगीत, फिल्म आदि। प्रत्येक चैनल का नाम ‘#’ चिन्ह से प्रारंभ होता है। उदाहरण के लिये #politics एक चैनल भी हो सकता है, जो राजनीति पर केन्द्रित हो। हम अपनी रूचि के चैट समूह या चैनलो को इंटरनेेट पर खोज सकते है। बहुत से प्रसिध्द व्यक्ति भी चैट समूहो मे शामिल होते है।
किसी चैट समूह मे शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति का एक उपनाम होता है। सामान्यतः लोग अपने असली नाम की जगह किसी उपनाम का उपयोग करते है। इसलिये हम अपनी वास्तविक पहचान बताये बिना सरलता से और स्वतंत्रता से चैटिंग कर सकते है। यदि कोई उपनाम ‘@’ चिन्ह से प्रारंभ हो रहा हो, जैसे -@robotman, तो वह किसी व्यक्ति के बजाय उस प्रोग्राम का नाम होता है, जो उस चैट समूह को संचालित या व्यवस्थित करता है।
चैटिंग आपके लिये मनोरंजक भी हो सकती है और समय कीबर्बादी भी। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उसका किस रूप मे उपयोग कर रहे है। चैटिंग के लिये आपको ऐसे सर्वर पर लाॅग आॅन करना चाहिए, जो इसकी सुविधा देते है। ऐसी कई वेब साइट है, जो चैटिंग की सुविधा उपलब्ध कराती है। चैटिंग के लिये कुछ विशेष साॅफ्टवेयर भी उपलब्ध है, जिन्हे मैसेंजर कहा जाता है। आप उनमे लाॅग आॅन कर सकते है और अन्य व्यक्तियो से आॅनलाइन गपशप कर सकते है। चैट साॅफ्टवेंयर एक इंटरएक्टिव साॅफ्टवेयर होता है, अतः आप सरलता से चैटिंग कर सकते है। कुछ लोकप्रिय चैट साॅफ्टवेयरो के नाम निम्नलिखित है-
Yahoo Messanger
MSN Messanger
RedoffBol
Web Server ब्राउजर को Web Page तथा Website उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाता है। यह एक तरह की तकनीक है, जो हमें, वेब के साथ छोड़ती है। कई बडी कम्पनियों का अपना स्वयं का Web Server होता है, लेकिन अधिकांश निजी तथा छोटी कम्पनियाँ वेब सर्वर किराये पर लेती है। यह सुविधा उसे इन्टरनेट एक्सेस कम्पनी द्वारा प्रदान की जाती है। बिना सर्वर के कोई वेब नहीं हो सकता है। यहाँ इन्टरनेट पर लाखों वेब सर्वर हैं और प्रत्येक में हजारों Home Page शामिल रहते हैं।
Web server software सारे प्रचलित आँपरेटिंग सिस्टम पर उपलब्ध रहता है। इसमें Unit के विण्डोज एन. टी. सर्वर (NT Workstation) तथा एनं. टी. वर्कस्टेशन (Windows NT Server) शामिल हैं। वेब सर्वर Software, Hardware तथा Operating System के संयोग पर आधारित है, जो अपने-अपने सर्वर प्लेटफॉर्म के लिए चुनाव में आसानी से रन करता है।
Windows पर आधारित कुछ वेब सर्वर निम्न हैं-
1. microsoft internet information server
2. Netscape fast track server
3. netscape enterprise server
4. Open market scure webserver
5. purveyor intro server
वेब सर्वर को वेबसाइट होस्टिंग के लिए बनाया जाता है अतः इनकी मुख्य विशेषता वेबसाइट होस्टिंग इन्वायरमेंट बनाना तथा इसे मेंटेन करना है अधिकतर वेब सर्वर निम्न विशेषताएं रखते हैं=
होस्ट सर्वर में स्पेस का अर्थ है सर्वर पर वेबसाइट की होस्टिंग के लिए उपलब्ध डिस्क स्पेस। डिस्क स्पेस वेबसाइट की सामग्री पर निर्भर करता है। होस्टिंग कंपनियां बड़ी वेबसाइटों की होस्टिंग के लिए अनलिमिटेड डिस्क स्पेस प्रदान करती हैं जिन्हें उच्च पैकेज की आवश्यकता होती है।
प्रत्येक वेबसाइट में फाइल, चित्र, डेटाबेस और ईमेल जैसी वेबसाइट सामग्री सर्वर पर स्टोर करने के लिए आवश्यक स्थान को होस्टिंग स्पेस या वेब होस्टिंग डिस्क स्पेस कहा जाता है।
प्रत्येक वेब होस्टिंग कंपनियां ग्राहकों के लिए अलग-अलग डिस्क स्पेस होस्टिंग प्लान प्रदान करती हैं, आप एक असीमित डिस्क स्पेस होस्टिंग की खोज भी कर सकते हैं, ताकि डिस्क स्पेस के मुद्दों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता न हो, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आप वास्तविक सामग्री के लिए बैकअप और स्टोरेज के लिए डिस्क स्थान का उपयोग कर रहे हैं|
वेब स्पेस, जिसे स्टोरेज स्पेस या डिस्क स्पेस के रूप में भी जाना जाता है, आम तौर पर एक वेब सर्वर पर स्पेस की मात्रा को संदर्भित करता है जो वेब होस्टिंग कंपनियों द्वारा वेबसाइट मालिकों को आवंटित किया जाता है। यह आपकी वेबसाइट से संबंधित सभी टेक्स्ट फ़ाइलों, इमेज, स्क्रिप्ट, डेटाबेस, ईमेल और अन्य फ़ाइलों की कुल मात्रा से बना है।
वेब स्पेस दो बुनियादी उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है। पहली यह आपको वर्ल्ड वाइड वेब पर फ़ाइल जानकारी (HTML फ़ाइलों, छवि फ़ाइलों, आदि) को अपलोड करने की अनुमति देता है जहां यह ग्लोबल स्तर पर उपलब्ध होगी। दूसरा, यह रिसोर्स आपको विभिन्न फ़ाइलों को स्टोर करने में सक्षम बनाता है जो वेबसाइट विज़िटर को दिखाई नहीं देते हैं लेकिन आपकी वेबसाइट के उचित कामकाज के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आपकी वेबसाइट पर स्थित सर्वर पर वेब स्पेस लेने वाली कुछ लोकप्रिय ‘अदृश्य’ फाइलें PHP फाइलें, डेटाबेस फाइलें और CGI प्रोग्राम फाइलें हैं। PHP फ़ाइलों को सर्वर पर एक .php एक्सटेंशन के साथ स्टोर किया जाता है और विभिन्न महत्वपूर्ण ऑन-साइट गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाता है जैसे कि ऑनलाइन स्टोर के लिए ऑर्डर फॉर्म प्रोसेसिंग, पोल रिजल्ट मैनेजमेंट आदि। डेटाबेस, बदले में, स्टोर कोड जैसे उत्पाद कोड, कस्टमर डिटेल इत्यादि, जो PHP स्क्रिप्स और CGI कार्यक्रमों द्वारा प्राप्त किया जाता है। CGI प्रोग्राम ऑनलाइन रूपों से डेटा इनपुट को प्रोसेसिंग करने के लिए कार्य करते हैं, जिसके लिए आवश्यक है कि एकत्रित जानकारी वेबसाइट के सर्वर पर स्टोर की जाए।
उल्लेख के लायक फाइलों पर कब्जा करने वाली अन्य वेब स्पेस में बाह्य रूप से लिंक सीएसएस फाइलें और जावास्क्रिप्ट फाइलें शामिल हैं। बाहरी CSS फाइलें, जो वेब पेज के स्टाइल तत्वों को परिभाषित करने के लिए जिम्मेदार हैं, वेब होस्टिंग सर्वर पर स्टोर होती हैं और प्रत्येक वेब पेज से जुड़ी होती हैं। जावास्क्रिप्ट फ़ाइलों को भी जरूरत पड़ने वाले वेब पेजों से जोड़ा जाता है, जो डायनेमिक ड्रॉप-डाउन मेनू, विज़िटर काउंटर आदि के आधार पर झूठ बोलते हैं, यानी वे एक वेबसाइट की अन्तरक्रियाशीलता बढ़ाने के लिए काम करते हैं।
आमतौर पर वेब स्पेस को पर्सनल कंप्यूटर और वेब सर्वर दोनों पर बाइट्स, किलोबाइट्स (1,000 बाइट्स), मेगाबाइट्स (1,000 किलोबाइट्स) और गीगाबाइट्स (1,000 मेगाबाइट्स) में मापा जाता है। चूंकि डिस्क स्पेस हाल ही में तुलनात्मक रूप से सस्ते वेब होस्टिंग रिसोर्स बन गया है, इसलिए इसे आमतौर पर मानक योजनाओं के साथ गीगाबाइट मात्रा में पेश किया जाता है। मेगाबाइट को “MB” और गीगाबाइट को “GB” के साथ दर्शाया जाता है।
वेबसाइट्स के समूह को पोर्टल कहा जाता है। पोर्टल का शाब्दिक अर्थ होता है प्रवेशद्वार। पोर्टल वास्तव में स्वयं भी एक वेबसाइट होती है, जिससे दूसरे कई अन्य संबंधित वेबसाइट पर पहुंचा जा सकता है। इंटरनेट से जुड़ने पर कई प्रकार के पोर्टल मिलते हैं। पोर्टल्स पर विभिन्न स्त्रोतों से जानकारियां जुटाकर व्यवस्थित रूप में उपलब्ध करायी जाती हैं। इसके साथ ही पोर्टल पर कई तरह की सेवाएं भी दी जाती हैं|
जैसे- कई पोर्टल यूजर को सर्च इंजन की सुविधा देते है,इसके अलावा, कम्युनिटी चैट फोरम, होम पेज,और ईमेल की सुविधाएं देते हैं। पोर्टल पर सर्च इंजन ,सब्जेक्ट डायरेक्ट्री, और अन्य सर्विस जैसे- न्यूज़ , इंटरटेनमेंट , स्टॉक , मार्केट ,शॉपिंग आदि की लिंक होती है। इन लिंक के द्वारा आप उस वेबसाइट तक पहुच सकते हो | पोर्टल पर समाचार, स्टॉक मूल्य और फिल्म आदि की गपशप भी देख सकते हैं। बहुत से पोर्टल्स को यूजर अपनी आवश्यकता के अनुसार कस्टमाइज भी कर सकता है |
पोर्टल बड़े सर्च इंजन और ब्राउज़र प्रोवाइडर द्वारा प्रायोजित (Sponsored) होते है। पोर्टल साइट पर सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर अपना ध्यान दो सर्विस पर अधिक लगाते है- मनोरंजन और इनफार्मेशन। वेब साइट के पहले पेज पर यूजर के लिए ये दोनों सर्विस उपलब्ध होती है । साधारण अर्थो में कह सकते है की पोर्टल वो वेब साइट होती है जो यूजर को मनोरंजन और इनफार्मेशन की सर्विस प्रोवाइड कराती है और जहाँ यूजर इंटरनेट पर अधिक अनुभव प्राप्त करता है |
कुछ प्रचलित पोर्टल्स के नाम निम्नलिखित है-
पोर्टल की विशेषताये निम्नलिखित है –
वेबसाइट पब्लिशिंग का मतलब है वेबसाइट को ऑनलाइन करना, जिसको हम निम्नलिखित steps में विभाजित कर सकते हैं|
वेबसाइट तैयार करने के बाद इंटरनेट पर इसकी उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए साइट को अपने डोमेन नेम की आवश्यकता होती है। यूजर इस डोमेन के नाम का प्रयोग कर इंटरनेट पर आपकी द्वारा उपलब्ध उत्पादों तथा सेवाओं को ढूंढने के लिए करते हैं। उदाहरण के तौर पर कंप्यूटर https://computerhindinotes.com पर आप हमारे द्वारं बनाये गए हिंदी नोट्स प्राप्त कर सकते हैं।
डोमेन के नाम का रजिस्ट्रेशन हम कई विभिन्न कंपनियों के द्वारा करवा सकते हैं। ऐसी कंपनियां जो डोमेन के नाम का रजिस्ट्रेशन करवाती हैं उन्हें डोमेन रजिस्ट्रार कहा जाता है। डोमेन के नाम का रजिस्ट्रेशन मुख्य रूप से वही कंपनियां अपने माध्यम से करवाती हैं जिनके होस्ट सरवर पर आप अपना वेबसाइट अपलोड करते हैं। पर पिछले कुछ समय में इस व्यवस्था में बदलाव हुआ है, अब डोमेन रजिस्टर और वेब स्पेस खरीदने के लिए आप अलग अलग कंपनी को चुन सकते हैं|
कुछ लोकप्रिय डोमेन रजिस्ट्रार के नाम निम्नलिखित है।
इनके आलावा भी लाखों ऐसी कंपनी है जिनसे आप अपना डोमेन रजिस्टर करवा सकते हैं |
जब हम किसी डोमेन रजिस्ट्रार की सहायता से अपना डोमेन रजिस्टर कराते हैं तो वह हमें एक निश्चित राशि के बदले में हमको डोमेन कंट्रोल पैनल और उसका यूजर नेम, पासवर्ड उपलब्ध कराता है। इस यूजर नेम और पासवर्ड की सहायता से हम डोमेन कंट्रोल पैनल में login करके वेब स्पेस प्रोवाइडर द्वारा दिए गए NameServer को डोमेन के साथ लिंक कर सकते हैं। वेबसाइट को चालू करने के लिए यह एक अति महत्वपूर्ण कार्य होता है |
आजकल कई कंपनियां अपने वेब सर्वर पर यूजर की साइट के लिए स्थान उपलब्ध कराती हैं जो कंपनी सर्वर पर स्थान उपलब्ध करते हैं उन्हें होस्ट सर्वर कहते हैं, ये कंपनी कई तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं जैसे कि सॉफ्टवेयर तकनीकी सहयोग इत्यादि। एक बार जब आप अपने डोमेन के लिए वेब स्पेस का रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं तो उसके पश्चात आप अपनी साइट की फाइलों को FTP या होस्टिंग कण्ट्रोल पैनल की सहायता अपलोड कर सकते हैं, इस के बाद ही इन्टरनेट के माध्यम से यूजर आपकी साइट को एक्सेस कर सकते हैं|
कुछ कंपनी जो अपने सर्वर पर स्थान उपलब्ध कराती हैं वह निम्नलिखित हैं
जब जब हम किसी भी होस्टिंग प्रोवाइडर से अपनी वेबसाइट के लिए स्पेस खरीदते हैं तो हमें एक होस्टिंग कंट्रोल पैनल मिलता है जिसकी सहायता से हम अपनी साइड के कंटेंट को कंट्रोल कर सकते हैं।
कुछ लोकप्रिय कण्ट्रोल पैनल के नाम निम्नलिखित हैं|
डोमेन नाम आपकी वेबसाइट का नाम है। डोमेन नाम वह पता है जहां इंटरनेट यूजर आपकी वेबसाइट तक पहुंच सकते हैं। इंटरनेट पर वेबसाइट खोजने और पहचानने के लिए डोमेन नाम का उपयोग किया जाता है। कंप्यूटर IP address का उपयोग करते हैं, जो संख्या की एक श्रृंखला है। डोमेन नाम अक्षरों और संख्याओं का कोई भी संयोजन हो सकता है, और इसका उपयोग विभिन्न डोमेन नाम एक्सटेंशन, जैसे .com, .net आदि में किया जाता है।
उपयोग करने से पहले डोमेन नाम पंजीकृत होना चाहिए। प्रत्येक डोमेन नाम यूनिक होता है। हर वेबसाइट का डोमेन नाम अलग अलग होता हैं दो वेबसाइट का डोमेन नाम एक जैसा नहीं होता हैं यदि कोई www.Computerhindinotes.com टाइप करता है, तो यह आपकी वेबसाइट पर जाएगा किसी और वेबसाइट पर नहीं।
डोमेन नाम दुनिया भर में उपयोग किए जाते हैं, विशेष रूप से नेटवर्क और डेटा संचार की दुनिया में। निम्नलिखित बिंदु बताते हैं कि वे कैसे काम करते हैं और उनका उपयोग कैसे किया जाता है:
इंटरनेट पर, आपका डोमेन नाम आपकी वेबसाइट की विशिष्ट पहचान है। किसी भी व्यक्ति, व्यवसाय या संगठन को इंटरनेट उपस्थिति की योजना बनाकर डोमेन नाम में निवेश करना चाहिए। अपना स्वयं का डोमेन नाम, वेबसाइट और ईमेल पते होने से आपको और आपके व्यवसाय को प्रोफेशनल रूप मिलता हैं। व्यवसाय के लिए डोमेन नाम पंजीकृत करने का एक और कारण कॉपीराइट और ट्रेडमार्क की रक्षा करना, साख बनाना, ब्रांड जागरूकता बढ़ाना और सर्च इंजन स्थिति बनाना है।
डोमेन नाम वेबसाइट के उद्येश्य को पहचानता है। उदाहणार्थ, यहाँ .com डोमेन नाम बताता है कि यह एक व्यापारिक साइट है। इसी प्रकार लाभ न कमाने वाले संगठन .org तथा स्कूल तथा विश्वविद्यालय आदि .edu डोमेन नामो का उपयोग करते है। नीचे दी गई सूची मे URL मे सामान्यतया प्रयोग किये जाने वाले डोमेन नाम और उनका पूरा नाम बताया गया है।
Abbreviation (Extensions) | Full Forms |
.com | Commercial Internet Sites |
.net | Internet Administrative Site |
.org | Organization Site |
.edu | Education Sites |
.firm | Business Site |
.gov | Government Site |
.int | International Institutions |
.mil | Military Site |
.mobi | Mobile Phone Site |
.int | International Organizations site |
.io | Indian Ocean (British Indian Ocean Territory) |
.mil | U.S. Military site |
.gov | Government site |
.store | A Retail Business site |
.web | Internet site |
.in | India |
.au | Australia |
.ae | Arab Emirates |
.sa | Saudi Arabia |
.us | United States |
.uk | United Kingdom |
.kh | Cambodia |
.th | Thailand |
.cn | China |
.vn | Vietnam |
.jp | Japan |
.sg | Singapore |
.nz | New Zealand |
.my | Malaysia |
आप डोमेन नाम के रूप में किसी शब्द या वाक्यांश का उपयोग कर सकते हैं। यदि डोमेन किसी कंपनी के लिए है, तो आप अपनी कंपनी का नाम डोमेन में रख सकते हैं, इससे आपके ग्राहकों के लिए आपको इंटरनेट पर ढूंढना आसान हो जाता है।
यद्यपि एक लंबा डोमेन याद रखना कठिन है, इसमें अधिक कीवर्ड शामिल हो सकते हैं, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ खोज इंजन किसी डोमेन नाम में कीवर्ड का उपयोग खोज एल्गोरिदम के हिस्से के रूप में करते हैं। लेकिन उन डोमेन नामों से सावधान रहें जो बहुत लंबे हैं|
वेबसाइट तैयार करने के बाद इंटरनेट पर इसकी उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए साइट को अपने डोमेन नेम की आवश्यकता होती है। यूजर इस डोमेन के नाम का प्रयोग कर इंटरनेट पर आपके द्वारा उपलब्ध उत्पादों तथा सेवाओं को ढूंढने के लिए करते हैं। उदाहरण के तौर पर https://computerhindinotes.com पर आप हमारे द्वारं बनाये गए हिंदी नोट्स प्राप्त कर सकते हैं।
डोमेन के नाम का रजिस्ट्रेशन हम कई विभिन्न कंपनियों के द्वारा करवा सकते हैं। ऐसी कंपनियां जो डोमेन के नाम का रजिस्ट्रेशन करवाती हैं उन्हें ‘डोमेन रजिस्ट्रार’ कहा जाता है। डोमेन के नाम का रजिस्ट्रेशन मुख्य रूप से वही कंपनियां अपने माध्यम से करवाती हैं जिनके होस्ट सर्वर पर आप अपना वेबसाइट अपलोड करते हैं। पर पिछले कुछ समय में इस व्यवस्था में बदलाव हुआ है, अब डोमेन रजिस्टर और वेब स्पेस खरीदने के लिए आप अलग अलग कंपनी को चुन सकते हैं|
कुछ लोकप्रिय डोमेन रजिस्ट्रार के नाम निम्नलिखित है।
इनके आलावा भी लाखों ऐसी कंपनी है जिनसे आप अपना डोमेन रजिस्टर करवा सकते हैं |
जब हम किसी डोमेन रजिस्ट्रार की सहायता से अपना डोमेन रजिस्टर कराते हैं तो वह हमें एक निश्चित राशि के बदले में डोमेन कंट्रोल पैनल और उसका यूजर नेम, पासवर्ड उपलब्ध कराता है। इस यूजर नेम और पासवर्ड की सहायता से हम डोमेन कंट्रोल पैनल में login करके वेब स्पेस प्रोवाइडर द्वारा दिए गए Name Server को डोमेन के साथ लिंक कर सकते हैं। वेबसाइट को चालू करने के लिए यह एक अति महत्वपूर्ण कार्य होता है |
आजकल कई कंपनियां अपने वेब सर्वर पर यूजर की साइट के लिए स्थान उपलब्ध कराती हैं जो कंपनी सर्वर पर स्थान उपलब्ध करते हैं उन्हें ‘होस्ट सर्वर’ कहते हैं, ये कंपनी कई तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं जैसे कि सॉफ्टवेयर तकनीकी सहयोग इत्यादि। एक बार जब आप अपने डोमेन के लिए वेब स्पेस का रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं तो उसके पश्चात आप अपनी साइट की फाइलों को FTP या होस्टिंग कण्ट्रोल पैनल की सहायता से अपलोड कर सकते हैं, इसके बाद ही इन्टरनेट के माध्यम से यूजर आपकी साइट को एक्सेस कर सकते हैं|
कुछ कंपनी जो अपने सर्वर पर स्थान उपलब्ध कराती हैं वह निम्नलिखित हैं
जब हम किसी भी होस्टिंग प्रोवाइडर से अपनी वेबसाइट के लिए स्पेस खरीदते हैं तो हमें एक होस्टिंग कंट्रोल पैनल मिलता है जिसकी सहायता से हम अपनी साइड के कंटेंट को कंट्रोल कर सकते हैं।
कुछ लोकप्रिय कण्ट्रोल पैनल के नाम निम्नलिखित हैं|